प्रयागराज [टुडे टीवी इंडिया नेटवर्क] महाकुंभ का आयोजन सदैव अध्यात्म, आस्था और संस्कृति का संगम होता है, लेकिन इस बार यह आयोजन कुछ अलग रूप में सामने आ रहा है। संत समाज ने पोस्टर वार के जरिए एक नए संदेश का आगाज किया है। प्रयागराज में नागवासुकी मंदिर के सामने लगे एक पोस्टर ने लोगों का ध्यान खींचा है। इसमें लिखा गया है, “डरेंगे तो मरेंगे।”
क्या है पोस्टर का संदेश?
यह नारा सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चर्चित कथन “बटोगे तो कटोगे” की तर्ज पर बनाया गया है। हालांकि, इसके पीछे संत समाज का क्या मकसद है, इस पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। जगद्गुरु रामानंदाचार्य की ओर से लगाया गया यह पोस्टर महाकुंभ के दौरान संत समाज की बढ़ती भूमिका और उनके विचारों की मुखर अभिव्यक्ति को दर्शाता है।
महाकुंभ में संतों की बढ़ती सक्रियता
महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। इस बीच, संत समाज भी अपनी उपस्थिति और विचारधारा को व्यापक रूप से प्रस्तुत कर रहा है। पोस्टर में लिखा गया नारा “डरेंगे तो मरेंगे” एक चेतावनी और प्रेरणा का मिला-जुला रूप प्रतीत होता है। यह नारा केवल भक्तों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए भी हो सकता है, जो समाज में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
सामाजिक और आध्यात्मिक संदर्भ
इस तरह के नारों और पोस्टरों के जरिए संत समाज सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश देने की कोशिश करता है। इस नारे का मुख्य उद्देश्य लोगों को डर और नकारात्मकता से मुक्त होकर जीने की प्रेरणा देना हो सकता है। नागवासुकी मंदिर के सामने इसे लगाने के पीछे संभवतः यह संदेश छिपा हो कि धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों पर भय का कोई स्थान नहीं है।
चर्चा का विषय बना पोस्टर
प्रयागराज में यह पोस्टर अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। महाकुंभ में इस तरह की अभिव्यक्तियों से आयोजन के माहौल में नई ऊर्जा और रोचकता आ गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि संत समाज इस पोस्टर वार के जरिए और कौन-कौन से संदेश प्रस्तुत करेगा।
पहले भी विवादों में रहा है संत समाज
संत समाज का विवादों से पुराना नाता रहा है। इसके पहले महाकुंभ में उन्होंने शाही स्नान की जगह “राजश्री स्नान” का आयोजन कर नई परंपरा की शुरुआत की थी, जो काफी चर्चा में रही थी। इसके अलावा, संत समाज ने सरकार से मांग की थी कि महाकुंभ मेले के दौरान मुस्लिमों को खाने-पीने की दुकान लगाने की अनुमति न दी जाए। इन बयानों और मांगों ने उस समय बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विमर्श खड़ा कर दिया था।
“डरेंगे तो मरेंगे” के मायने
अब संतों का नया नारा एक बार फिर बहस का कारण बन गया है। इसका संदेश क्या है, इस पर विभिन्न धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह नारा समाज में एकता और दृढ़ता का आह्वान है, तो कुछ इसे कट्टरपंथी संदेश के रूप में देख रहे हैं।
समाज और राजनीति में बढ़ता प्रभाव
महाकुंभ जैसे आयोजन सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं होते, बल्कि समाज और राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। संत समाज अपनी मांगों और नारों के जरिए सरकार और समाज को अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहे हैं। महाकुंभ का यह आयोजन केवल आध्यात्मिकता का संगम नहीं है, बल्कि संत समाज के विचारों और उनकी भूमिका का मंच भी बन चुका है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नए नारे का असर महाकुंभ और समाज पर क्या पड़ता है।